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Tuesday, June 16, 2020

Jine ki rah.,,,

बचपन........
बचपन के खेल कोई फिर से खिला दे
उम्र मेरी लेले और मुझे बच्चा बना दे।

जब कागज की कश्ती थी पानी का
              किनारा था,
पानी की चाय थी झूठी-मूठी का
             खाना था।
कोप भवन में जाकर अपनी बात
             मनवाना था,


खेलने की मस्ती थी ये दिल भी
             आवारा था ।
कहाँ  आ गए  इस  समझदारी के
              दलदल में ,
वो  नादान  बचपन  भी  कितना
              प्यारा था ।
बचपन की मासूमियत न जाने कहाँ
               छूट गई है ,
वक्त से पहले ही वो रूठ कर दूर
                  चलीगई है ।

मेरे रूठे हुए बचपन को कोई मना कर
                 बुला दे ,
कट्टी-चुप्पी वाले दिन काश फिर  मुझे
                  दिला दे ।
       आज का दिन मंगलमय हो

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