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Wednesday, June 17, 2020

वास्तविक शिक्षा


 

एक अधिकारी जो एक बार उत्तर प्रदेश की यात्रा पर गए। उनके साथ उनकी पत्नी भी थीं। रास्ते में एक बाग के पास वे लोग रुके। बाग के पेड़ पर बया पक्षियों के घोसले थे। उनकी पत्नी ने कहा दो घोसले मंगवा दीजिए मैं इन्हें घर की सज्जा के लिए ले चलूंगी। उन्होंने साथ चल रहे पुलिस वालों से घोसला लाने के लिए कहा। पुलिस वाले वहीं पास में गाय चरा रहे एक बालक से पेड़ पर चढ़कर घोसला लाने के बदले दस रुपये देने की बात कहे लेकिन वह लड़का घोसला तोड़ कर लाने के लिए तैयार नहीं हुआ। अधिकारी द्वारा उसे दस की जगह पचास रुपए देने की बात कहे फिर भी वह लड़का तैयार नहीं हुआ। उसने अधिकारी से कहा साहब जी! घोसले में चिड़िया के बच्चे हैं शाम को जब वह भोजन लेकर आएगी तब अपने बच्चों को देख कर बहुत दुखी होगी इसलिए आप चाहे जितना पैसा दें मैं घोसला नहीं तोड़ सकता।

 

इस घटना के बाद उस अधिकारी को आजीवन यह ग्लानि रही कि जो एक चरवाहा बालक सोच सका और उसके अन्दर जैसी संवेदनशीलता थी इतने पढ़े.लिखे और आईएएस होने के बाद भी वे वह बात क्यों नहीं सोच सके उनके अन्दर वह संवेदना क्यों नहीं उत्पन्न हुई

उन्होंने कहा उस छोटे बालक के सामने मेरा पद और मेरा आईएएस होना गायब हो गया। मैं उसके सामने एक सरसों के बीज के समान हो गया। शिक्षा पद और सामाजिक स्थिति मानवता के मापदण्ड नहीं हैं।

 

प्रकृति को जानना ही ज्ञान है। बहुत सी सूचनाओं के संग्रह से कुछ नहीं प्राप्त होता। जीवन तभी आनंददायक होता है जब ज्ञानएसंवेदना और बुद्धिमत्ता हो।

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