अंगारो से पैर उनके जलते रहे।
मजदूरों को गये सब छोड़ मालिक,
भूख से पेट जलते रहे।
श्रमिकों के परिवार, बच्चों तक ने झुका दिये लंबी रास्तों के सिर,
अंगारों से पैर उनके जलते रहे।
जन्मभूमि तक पहंूचने की ललक में,
रास्ते में कितने पथिक मरते रहे।
उद्योगों के कर्णधार, विश्वकर्मा, मेहनत के कर्मवीर, की दूर्दशा होते रहे,
नमन है उन कर्मवीर श्रमिकों को, जो देशहित में अपना श्रम बल देते रहे।
नमन है उन मानवता के रक्षकों को जो इनको राहों में भोजन, पानी देते रहे।
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Good writing ok
Good writing
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